अनोखी परंपराओं से जुडी खबर :- शिव भक्तों ने नंगे पैर कांटों से भरे खजूर के पेड़ पर चढ़कर नृत्य करते हुए खजूर तोड़ा, भक्तों में बांटीं जाती है प्रसाद

शिव भक्तों ने नंगे पैर कांटों से भरे खजूर के पेड़ पर चढ़कर नृत्य करते हुए खजूर तोड़ा, भक्तों में बांटीं जाती है प्रसाद

 

कोंडागांव से विजय साहू की स्पेशल रिपोर्ट :- बस्तर इलाका अपनी अनोखी परंपराओं के लिए जाना जाता है। आदिवासी त्योहारों के बीच अन्य जगहों के पर्व भी स्थानीय तरीके से आकर्षक रूप में मनाए जाते हैं। उनमें से है बंगालियों को पर्व चरक पूजा यानी नील पूजा। पश्चिम बोरगांव में होनी वाली इस चरक पूजा के दिन शिव भक्त नंगे पैर कांटों से भरे खजूर के पेड़ पर चढ़ते हैं।

 

 

फिर नृत्य करते हुए खजूर तोड़ते हैं। इसे देखने के लिए आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में पहुंचते हैं। पश्चिम बोरगांव में पिछले साल की भांति इस बार भी मनाए जाने वाली चड़क पूजा (नील पूजा) क्षेत्र में इस समय धूम मची हुई है। बंगाली बाहुल्य क्षेत्र पश्चिम बोरगांव में चरक पूजा की तैयारी जोर शोर से आयोजक द्वारा किया गया हैं। इस दौरान पूरा क्षेत्र बोलबम के उद्घोष के साथ भक्तिमय हो गया। 

 

 

खजूर के गुच्छों को प्रसाद रूप में करते हैं ग्रहण :-

 

चरक पूजा के एक दिन पहले यानी शुक्रवार को खजूर भांगा उत्सव का आयोजन हुआ। क्षेत्रवासी जिसका इंतजार बेसब्री से कर रहे थे। शिवभक्त की टोलियों के सदस्य गंगा जल से स्नान कर गेरुआ वस्त्र धारण कर कटीले खजूर पेड़ में बिना किसी सहारे चढ़ गए तथा नृत्य करते हुए पेड़ पर लगी कच्चे खजूर की डालियों को तोड़ नीचे फेंकते रहे।

 

 

खजुर पेड़ के नीचे चारों ओर खड़े श्रद्धालु ऊपर से फेंके खजूर फल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते रहे। यह मान्यता है कि गुच्छे को घर के प्रवेश द्वार पर लगाने बरकत आती है। इसलिए इस फल को पाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। यह दिन शिवभक्तों का भिक्षा मांगने का आखिरी दिन होता है। 

 

 

चरक पूजा :-

 

खजूर भांगा उत्सव के बाद चारक पूजा जिसमें वही भक्त शामिल होंगे जो महीने भर उपवास रहते हैं। आज भगवा वस्त्र धारी संन्यासियों द्वारा विधि-विधान पूर्वक चरक पूजा संपन्न किया जाएगा। इस दौरान सन्यासियों द्वारा भोले बाबा की लिंग पूजा संपन्न कर पीठ पर लोहे की काटा गढ़वा कर चरक यानी चरखा में टांग कर उन्हें घुमाया जाता है.

 

बता दे की यह चरक पूजा के एक दिन पहले यानी शुक्रवार को खजूर भांगा उत्सव के रूप में मनाया जाता है .इस पूजा की क्षेत्रवासी बेसब्री से  इंतजार  करते है .मान्यता ये है कि खजूर के गुच्छे को घर के प्रवेश द्वार पर लगाने से बरकत आती है। इसलिए इस फल को पाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। बताया जाता है की यह दिन शिवभक्तों का भिक्षा मांगने का आखिरी दिन होता है.

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