मान्यता : एक ऐसा गांव जहां ना ही होली जलाई जाती है और न ही दशहरे मे रावण का दहन साथ ही मृत्यु के बाद भी नही जलाई जाती है चिता
धर्मेंद्र यादव धमतरी / होली के त्योहार की हर जगह धूम दिखाई दे रही है. हर कोई होली के रंग में रंगना चाह रहा है. लेकिन आज हम अब आपको होली से जुड़ी एक ऐसी कहानी से रूबरू करवाएंगे जो आपकी आंखों को नम कर देगी.
छत्तीसगढ़ के धमतरी के एक गांव में ना तो होलिका दहन होता है और ना रावण दहन, साथ ही यहां किसी की मृत्यु होने के बाद के साथ इस गांव में चिता भी नहीं जलाई जाती है. यहां मृत व्यक्ति की चिता दूसरे गांव में जलाई जाती है. ये सारी परंपरा इस गांव में काफी समय से चली आ रही है. बात कर रहे हैं धमतरी से महज 5 किलोमीटर दूर तेलीनसती गांव की, जहां होली पर गुलाल रंग तो पूरे रंग में खेला जाता है लेकिन होलिका दहन नहीं होती है.
आफत आने का बना रहता है डर
गांव वालों की मान्यता है कि आग जलाने से उनके ऊपर आफत आ सकती है. होली नहीं जलाने की प्रथा आज की नहीं बल्कि 16 वीं शताब्दी से चली आ रही है. इस परंपरा को युवा वर्ग भी आगे बढ़ा रहे हैं. दरअसल धमतरी से सरहद के करीब तालाब के किनारे बने मन्दिर के इतिहास में ही गांव की इस अनोखी कहानी का रहस्य छिपा हुआ है.
तेलीनसत्ती गांव में ना ही होली जलाई जाती है और न ही दशहरे मे रावण का दहन किया जाता है. वैसे इन त्योहारों की खुशियां और उमंग यहां छोटे से लेकर हर बड़े बुजुर्ग में बराबर ही नजर आती है लेकिन इन दोनों मौकों पर गांव में आग नहीं जलती.
होली के मौके पर गांव में आग नहीं जलाई जाती
अगर यह सब होता भी है तो सरहद के बाहर होता है ऐसी मान्यता है कि होली के मौके पर गांव में आग नहीं जलाई जाती है. अगर कोई व्यक्ति ऐसा करने की कोशिश भी करता है तो गांव में आफत आ जाती है.
गांव वालों का कहना है कि, ‘सदियों पहले इस गांव में एक महिला बिना शादी किए एक युवक को अपना पति मान चुकी थी. उसकी मौत के बाद उसकी चिता में सती हुई थी तब से यह परंपरा चली आ रही है.
अपनी पति की चिता में हो गई सती
गांव के प्रमुख ग्रामीण बताते है कि गांव में एक जमींदार था, जो सात भाई और एक बहन थे. बहन ने गांव के युवक से बिना शादी किए उसे मन ही मन अपना पति मान लिया था. और ये युवक उसी के घर रहता था.
उसकी सैकड़ों एकड़ की खेती भी थी. एक बार खेत का मेड़ टूट गया और इसके बाद सातों भाई ने मेड़ बांधने की खूब कोशिश की लेकिन वह मेड़ बांध नहीं सके. जिसके बाद सातों भाइयों ने अपने बहनोई को मारकर उसी मेड़ में गाड़ दिया.
उन्होंने अपनी बहन को सारी बात बता दी. पूरी बात जानने के बाद बहन ने पति को मेड़ के अंदर से बाहर निकालकर पति की चिता सजाई और इसके बाद खुद अपने पति की जलती चिता में सती हो गई.
यहां जय मां सती मंदिर बनाया गया
इसके बाद से ही गांव में होलिका नहीं जलाई जाती है और बाद में यहां इनकी याद में जय मां सती मंदिर भी बनाया गया है. इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश भी वर्जित है. इस गांव में सिर्फ होली या रावण दहन ही नहीं होता बल्कि किसी की मृत्यु होने पर पड़ोसी गांव की सरहद में जाकर चिता जलाई जाती है. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो गांव में कोई न कोई विपत्ति आती है.
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