“मानो तो मैं गंगा मां हूं ना मानो तो बहता पानी” प्रकृति की गोद में आस्था का केंद्र बालोद जिला का मालिपानी कुंड।

Nbcindia24/छत्तीसगढ़/ बालोद जिले के वनांचल क्षेत्र ग्राम पंचायत सिंघोला से लगे जंगल के बीचो बीच प्रकृति की गोद में एक कुंड। जिसे मालिपानी मौली माता के नाम से जाना जाता है।

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मान्यता के अनुसार कुंड की पूजा अर्चना कर इनके पानी के स्नान व सेवन करने से चर्म रोग, खुजली, दाद सहित कई प्रकार की बीमारी निजात मिल जाता है। वही क्षेत्र के किसान अपने खेतों की फसलों को बीमारी से बचाने व अच्छी फसलों की पैदावार सहित कई शुभ कार्य के लिए कुंड की पानी का उपयोग करते है।

मालिपानी कुंड

जानकारों के अनुसार इस कुंड की खोज 50 साल से भी पहले राम बाबा नामक एक साधु ने किया था। जो इस स्थल पर एक पत्थर को तराश सीलिंग बना पूजा किया करता था। फिर एक दिन वह काफी सालों बाद वहां से चला गया। इसके बाद जेठीन बाई यादव नामक महिला इसी स्थल पर खुले आसमान में रहकर सालों तक पूजापाठ करती थी।

वर्तमान में शोमनाथ गोटा, कन्हैयालाल गोड़ापठिया आस्था का केंद्र मालिपानी में पूजापाठ कर रहे है। वही एक समिति बना देखरेख कर स्थल पर मंदिर निर्माण कर रहे। जिसमे किशन सेन, रामशाय रावटे, गंगाराम ठाकुर, नांकदास वैष्णव, ललित उइके, शत्रुहन सिंग, भोलाराम निषाद पदाधिकारी व समिति के सदस्य है।

प्रकृति की गोद में बसा आस्था का केंद्र मालिपानी पहुंचने का दो रास्ते हैं। एक ग्राम पंचायत सिंघोला से होकर जंगल के रास्ते ग्राम पचेड़ा पहुँच मार्ग में 4 किलोमीटर की दूरी पर है। तो वही पचेड़ा से सिंघोला जंगल मार्ग में लगभग 3 किलोमीटर की दूरी तय कर यहां पहुचा जा सकता है। यहां तक पहुंचने के लिए आपको बाइक से यह तो बड़ी टायर वाले कार से पहुंच सकते है।

बालोद जिला मुख्यालय से घोटिया मार्ग से बेलोदा होते हुए सीधा सिंघोला। तो वही डौंडी से भी आप सिंघोला पहुंच सकते हैं।

आप दल्ली राजहरा से 10 किलोमीटर दूर ग्राम पचेड़ा से 3 किलोमीटर की दूरी पर मालिपानी कुंड।

 

वर्तमान में इस स्थल पर मंदिर निर्माणाधीन हैं। माता के प्रति आस्था रखने वाले लोगों से मिल रहे हैं।सहयोग के आधार पर धीरे धीरे कर मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है। जैसे-जैसे इस स्थल के बारे में लोगों को जानकारी होने के बाद दर्शन करने पहुँच रहे।
यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले समय में यह स्थल एक बहुत बड़ा आस्था का केंद्र होगा। और इसे पर्यटक के रूप में जाना जाएगा।

तो आप देर ना करें आप भी जाएं और इस मालिपानी माता का दर्शन करें।

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