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Nbcindia24/chhattisgarh/अमृत साहू भाटापारा/ अपने पारंपरिक संस्कृति को प्रति वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाने वाला राष्ट्रीय भोजली महोत्सव को कोरोना को देखते हुए अपने अपने स्तर पर गांव, ब्लाक, जिला में शासन प्रशासन के निर्देशो का पालन एवं गोंडी धर्म संस्कृति संरक्षण समिति एवं छत्तीसगढ़ गोंडवाना संघ के पारंपरिक नियमों का पालन करते हुए संयुक्त तत्वावधान में मनाने का निर्णय लिया गया है।

आदिवासी संस्कृति परंपरा को अक्षुण्य बनाये रखने प्रति सातों अन्न माता की पूजा, अच्छी बारीश, अच्छी फसल की कामना करते हुए जो सबका का जीवन दायिनी है, ऐसी प्रकृति पूजा आदिवासी समाज द्वारा किया जाता है।

इसमें माताएं सात दिनों तक भोजली माता की पूजा करते हैं। जिसमें सात प्रकार के अन्नो को बोया जाता है और सेवाएं दिया जाता है। तत्पश्चात सावन पूर्णिमा को सरवर स्नान तालाब नदी आदि में मांदर की थाप पर थिरकते नाचते गाते सरवर स्नान भोजली माता को कराया जाता है।
जिसमें गीत गाए जाते हैं-

देवी गंगा, देवी गंगा, लहरा तुरंगा हो, लहरा तुरंगा।
हमरे भोजली दाई के भीजे आठो अंगा ।
या हो.. देवी गंगा, देवी गंगा।
हो ओ ओ देवी गंगा….देवी गंगा।

अच्छी बारीश और फसल की कामना से गाया जाता है।जो आदिवासियों का अन्न और बारिश और प्रकृति को समर्पित गीत है।

आर के कुंजाम प्रांतीय महासचिव गोंडी धर्म संस्कृति संरक्षण समिति छत्तीसगढ़

इस वर्ष कोरोना को देखते हुए छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उड़िसा प्रांत के विभिन्न गांवों, ब्लाक जिला में माताओं , युवतियों द्वारा हर्षोल्लास के साथ अपने संस्कृति को अक्षुण्य बनाये रखने हेतु मनाने का निर्णय प्रदेश स्तर पर लिया गया है।
उक्त जानकारी आर के कुंजाम प्रांतीय महासचिव गोंडी धर्म संस्कृति संरक्षण समिति छत्तीसगढ़ द्वारा दिया गया।

Nbcindia24

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