टीआई पर त्वरित कार्रवाई के बाद भी अंधेरे में कई सवालों के जबाव!

कौन है नेता जी? डीव्हीआर से छेड़छाड़ के पीछे थाना प्रभारी की मंशा क्या थी ? जबाव मांग रहे पत्रकार

बस्तर@ गांजा तस्करी प्रकरण में बस्तर के चार पत्रकारों की गिरफतारी का छत्तीसगढ़ समेत आंध्र, तेलंगाना, ओड़िशा के पत्रकारों ने खुलकर विरोध प्रकट किया है। मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग को लेकर शुक्रवार को कोंटा में धरना प्रदर्शन के रूप में पत्रकार एक मंच पर नजर आए। पत्रकारों ने यहां एक स्वर में आंध्र प्रदेश के राजमेंहंद्री जेल में निरूद्ध चार साथियों की निःशर्त रिहाई और प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग की।

पुलिस की अब तक की इंवेस्टिगेशन में कोंटा के पूर्व थाना प्रभारी अजय सोनकर के विरूद्ध डीव्हीआर से छेड़छाड़ की बात सामने आई है, जिसमें आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध करते सोनकर को जेल भेजा जा चुका है,लेकिन एसडीओपी स्तर की इस जांच को लेकर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं।

मसलन थाना प्रभारी के विरूद्ध डीव्हीआर से छेड़छाड़ का आपराधिक प्रकरण बनाया गया, लेकिन पुलिस यह उजागर नहीं कर पाई कि आखिर इस कृत्य के पीछे थाना प्रभारी की मंशा क्या थी? जिस दिन पत्रकार हिरासत में लिए गए, उसके एक दिन पहले की संबंधित लॉज जहां बप्पी राय और उनके साथी ठहरे हुए थे, उसकी फूटेज को रिकवर करना पुलिस की जांच में जरूरी क्यों नहीं समझा गया।

ऐसे कई सुलगते सवाल हैं, जिससे पुलिस की जांच संदेह के घेरे में हैं। हालांकि पत्रकारों की तरफ से की जा रही उच्च स्तरीय जांच की मांग पर गृह मंत्री विजय शर्मा का भी बयान आ चुका है, जिसमें पुलिसिया कार्रवाई को सही दिशा में बता रहे हैं।

हालांकि प्रदर्शन के बीच बस्तर के कुछ पत्रकारों से चर्चा में उनका क्या कहना था, पढ़िए हुबहु उन्हीं की जुबानी..

 

विकास तिवारी का कहना है….बहुत बारिक जांच होनी चाहिए पूरे मामले की। मुझे जो जानकारी मिली है कि रिपोर्टिंग के दौरान थाना प्रभारी से पत्रकारों की तू-तू मैं-मैं हुई थी, चूंकि पत्रकारों का भी अपना एक प्रोटोकॉल होता है और उस दायरे में ही रहकर रिपोर्टिंग करनी चाहिए। हालांकि किसी तरह का विवार हुआ भी था तो थाना प्रभारी के पास अधिकार है कि वो शासकीय कार्य में बाधा डालने का प्रकरण पंजीबद्ध करें, लेकिन ऐसा ना कर उन्होंने साजिश पूर्ण कार्रवाई, जो एक तरह से क्राईम है। हम हमेशा से सुनते आए हैं, ज्यादा बात करोगे तो तुम्हारी गाड़ी में गांजा रखवा देंगे और यहां हुआ भी यही। जरा सोचिए कि पत्रकारों के साथ ऐसा हो सकता है तो आम आदमी की क्या बिसात। सलाखों के पीछे उसका पूरा जीवन बीत जाएगा और साबित नहीं कर पाएगा कि वह बेगुनाह है।

रही बात गृहमंत्री के बयान की तो यहां उनके सामने दो स्थिति निर्मित है। कार्रवाई भी करना है और अपने सिस्टम को बचाना भी है। चूंकि कार्रवाई होती है तो सिस्टम भी बदनाम होगा, लेकिन हकीकत तो यही कि अगर निष्पक्षता से जांच होगी तो और बहुत सी धाराएं थाना प्रभारी के विरूद्ध लगेंगी। ये सही जांच नहीं है केवल पत्रकारों की संतुष्टि के लिए थाना प्रभारी पर त्वरित कार्रवाई की गई है। हालांकि कार्रवाई भी ऐतिहासिक है। चूंकि कमल शुक्ला के प्रकरण में मारपीट के पुख्ता प्रमाण के बाद भी किसी की गिरफतारी नहीं हुई थी।

इस मामले में सबको एकजुट होना पड़ेगा। भीड़ बढ़ाने की बजाए क्वालिटी को एकत्रित करना होगा। इससे तात्पर्य पत्रकारिता से है। आप पत्रकारिता क्यों कर रहे हैं? आपका उद्देश्य क्या हैं? आप भटक तो नहीं गए? पत्रकार की आड़ में आप जयचंद की भूमिका में हैं तो यह गलत हैं। बात बस्तर की ही नहीं पूरे देश में पत्रकारिता संवेदनशीलता के साथ नहीं हो रही हैं अगर होती तो सरकारों की बैंड बज जाती, लेकिन इसके लिए सिर्फ पत्रकार जिम्मेदार नहीं हैं। गांधी जी ने कहा था कि पत्रकारिता जनता के पैसांे से होनी चाहिए। यहां पत्रकारिता सरकार के पैसों से हो रही हैं। सरकार से मीडिया संस्थाओं को फंडिंग होती है और सवाल जनता से पूछे जाते हैं।

मेरी राय में न्यायालय ही अंतिम विकल्प हैं। सरकार के उपर न्यायालय है। जांच को लेकर संतुष्ट नहीं तो पिटिशन फाइल कर सकते हैं।

 

वरिष्ठ पत्रकार विनोद सिंह का कहना.. हमारे चार साथियों को फंसाया गया हैं और इसमें कोंटा पुलिस, स्थानीय कुछ नेता संलिप्त हैं। इनकी सांठगांठ में रेत माफिया पल रहे थें। रेत का अवैध परिवहन का बड़ा खेल चल रहा था। जिसका भंडाफोड़ पत्रकारों ने किया, इसलिए उन्हें साजिश के तहत् फंसाया गया, जिसका खुलासा हम पत्रकार मिलकर करेंगे।

 

जितेंद्र चौधरी.. निःसंदेह पूरे प्रकरण की सुक्ष्मता से जांच होनी चाहिए। जो षडयंत्रकारी लोग है उनकी जल्द से जल्द गिरफतारी होनी चाहिए, लिहाजा इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग हम कर रहे हैं।

 

हरीश शर्मा..पुलिस अपना काम कर रही होती थे हमारे साथी अब तक रिहा हो जाते। जब बड़ी बड़ी घटनाओं पर त्वरित एक्शन लेकर उसका निदान होता है तो इस मामले में सच्चाई से वाकिफ होते हुए भी हमारे चार निर्दोष साथी जेल में क्यों है, यह सवाल सरकार से हमार है।

 

गौरव श्रीवास्तव.. ये वो पत्रकार है जो हमेशा से कानून के साथ खड़े रहे हैं। उनकी मदद करने वाले पत्रकार हैं। सरकार जब भी मुसीबत में फंसी हैं पत्रकारों का सहयोग लेती आई हैं और आज जब ये मुसीबत में हैं तो सरकार-प्रशासन आगे आने से झिझक रही हैं। मुख्यमंत्री को तत्काल सीबीआई जांच की घोषणा करनी चाहिए।

 

पुष्पेंद्र सिंह़ अगर अहम कड़ी देखी जाए तो संदेह के वाण सबसे पहले थाना प्रभारी और उस स्थानीय नेता पर है, जिसका जिक्र थाना प्रभारी ने व्हाट्सअप पर इन किया था कि नेता जी को बता देना। टीआई और नेता जी से पूछताछ होती है तो धागे अपने आप खुल जाएंगे। डीव्हीआर से छेड़छाड़ के आधार पर मामला बना देना और जेल भेज देना कही से सही नहीं हैं, पूरी कहानी के तार निकलकर सामने आने चाहिए। जरूरी है कि टीआई और नेताजी से कड़ाई से पूछताछ की जाए।

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