बस्तर संभाग का यह है इकलौता प्राचीन नागमंदिर,जहां नागदेव के द्दर्शन को उमड़ पड़ते है भक्त

नागफनी के नागमंदिर में नागदेव के दर्शन को उमड़े भक्त,भक्तगण नागफनी के नागमंदिर पहूंच नागदेवता के लिए दर्शन,बस्तर संभाग का यह इकलौता प्राचीन नागमंदिर है
दंतेवाड़ा / नागपंचमी के अवसर पर ग्राम नागफनी स्थित नागमंदिर में नागदेवता के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ सुबह से ही उमडऩी शुरू हो गई थी। श्रद्धालुओं ने दुग्धाभिषेक कर नाग देवता की पूजा-आराधना की । आज शाम नागफनी मंदिर परिसर पर जात्रा मेला का भी आयोजन किया गया है जिसमें दूरदराज क्षेत्र के हजारों ग्रामीण शामिल होंगे।

 

गीदम-बारसूर मार्ग पर स्थित नागफनी मंदिर में आज हजारों श्रद्धालुओं ने नाग देवता की पूजा अर्चना की । नागपंचमी के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण आज नागमंदिर पहूंचे और नागदेवता के दर्शन पूजन कर परिवार की सुख समृतिद्ध की कामना नागदेवता से की । नागफनी मेंं नागदेवता का यह मंदिर बस्तर में वर्षो तक नागवंशी राजााओं का पूजन स्थल रहा है। मान्यता है की जो भक्त नागपंचमी के दिन इस मंदिर में आकर सच्चे मन से नागदेवता की पूजा करता है उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। संभाग का एक मात्र प्राचीन नागमंदिर होने के कारण क्षेत्र के दूरस्थ स्थलों से श्रद्धालु यहां आज के दिन आते हैं। नागपंचमी पर हर वर्ष नागफनी स्थित नागमंदिर स्थल पर जात्रा मेला भी भरता है। विदित हो कि नागवंश शासन काल में दसवीं और ग्यारहवीं सदी में यहां नाग मंदिर की स्थापना की गई थी। नागवंश के ईष्ट देव नाग होने से अपने शासन का के दौरान नागवंशी शासको ने यहां मंदिर की स्थापनी की थी। मुगलों के आक्रमण के समय मूर्तियां खण्डित हो जाती थीं, इस वजह से मूर्तियों को बचाने के लिए उन्हें जमीन के भीतर दबा दिया जाता था। आज जहां मंदिर स्थित है, वहां केवल एक छोटी सी मूर्ति नजर आती थी। आस-पास की खुदाई की गई तो प्राचीन काल में लोगों द्वारा दबायी गई मूर्तियां दिखायी पड़ी और लोगों ने वर्तमान मंदिर का निर्माण किया। मंदिर के पुजारी प्रमोद अटामी ने नागपंचमी पर नागमंदिर में होने वाले कार्यक्रम के संबंध में विस्तारपूर्वक बताते हुए कहा की इस मंदिर में पिछले 30 वर्षो से नागपंचमी पर मेला आयोजित होता आ रहा है। नागपंचमी के दिन प्रात: काल विशेष पूजा अर्चना पश्चात गायत्री यज्ञ किया जाता है। उसके उपरांत आसपास के दर्जनों गांव से देवी-देवताओं को लाया जाता है। इन देवताओं को सम्मानपूर्वक पुजारी व मंदिर से जुड़े अनुयायियों द्वारा मंदिर में लाकर स्थापित कर आरती पूजा कर भोग चढ़ाते हैं। सायं 4 बजे लाए गए देवी देवताओं व छत्र को लेकर मंदिर की परिक्रमा की जाती है। जिसके बाद देवी-देवताओं की बिदाई होती है।

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