आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय हल्बा समाज के संघर्ष की जीत – डॉ देवेंद्र माहला।

Nbcindia24/वीरेन्द्र भारद्वाज/दल्लीराजहरा। विगत दिनों बिलासपुर उच्च न्यायालय द्वारा 58 प्रतिशत आरक्षण को गलत बताते हुए खारिज कर दिया गया था। कहा गया था आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 58 फीसदी करना असंवैधानिक है। कोर्ट ने आबादी के अनुसार आरक्षण देने को भी गलत माना था पर अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बदल कर 58 प्रतिशत आरक्षण पर लगी रोक को हटा दिया है। अब प्रदेश में सरकारी नौकरियों में भर्ती, प्रमोशन और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश का रास्ता साफ हो गया है। तत्कालीन समय मे बिलासपुर हाई कोर्ट द्वारा लगाए गए रोक के बाद अनेकों सामाजिक संगठनों ने अपना पक्ष रखा, ऐसे ही अखिल भारतीय हल्बा हल्बी आदिवासी समाज 36गढ़ केंद्रीय महासभा ने भी रोके गए आरक्षण को पुनः लागू किये जाने के संबंध में जमीनी एवं कानूनी लड़ाइयां लड़ी। उक्त विषय पर अखिल भारतीय हल्बा हल्बी समाज 36गढ़ केंद्रीय महासभा अध्यक्ष डॉ देवेंद्र माहला ने आरक्षण के विषय पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि कुछ असंतुष्ट लोग, जो नहीं चाहते थे कि हमारे आदिवासी, जनजाति समाज को 32% आरक्षण मिले, हाईकोर्ट में गए जहां कांग्रेस सरकार द्वारा तथ्यात्मक जानकारी नही देने व तर्कसंगत ढंग से पैरवी नही करने की वजह से माननीय उच्च न्यायालय द्वारा आरक्षण रोक लगा दिया गया था। उक्त आदेश के बाद हमारा समाज अपने हक व अधिकार की लड़ाई लड़ने को बाध्य हुआ और आदिवासी मजबूर नही मजबूत है के ध्येय के साथ आगे बढ़ा, 15 नवंबर 2022 को हमने अपने महासभा क्षेत्र अन्तर्गत आने वाले राष्ट्रीय व राजकीय राज मार्ग पर चक्का जाम किया और हल्बा समाज की क्षमता और सामर्थ्य का आभाष कराया परिणाम स्वरूप माननीय सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश हम सबके सामने है जो स्वागतेय है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब तत्काल भर्ती की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए। इस फैसले से साफ हो गया है कि 58 फ़ीसदी आरक्षण का पारित प्रस्ताव वैध है। आगे डॉ माहला ने राज्य के कांग्रेसी सरकार की निंदा करते हुए कहा कि हमारे 32 प्रतिशत आदिवासी आरक्षण के खिलाफ कोर्ट जाने वाले आखिर कौन हैं क्या आम जनमानस को पता नही है कि वे आज सत्ता के पद पर आसीन हैं राज्य की सरकार हम आदिवासियों को कमजोर समझना बंद करे। एक तरफ सरकार व सत्ता के करीबी कुछ लोग हमारे आरक्षण के खिलाफ कोर्ट चले जाते हैं और दूसरी तरफ सरकार कोर्ट में आरक्षण को बचाने में ठीक से पैरवी तक नही पाती यह सब दिखता है। विगत दिनों आरक्षण से वंचित हमारे आदिवासी भाइयों बहनों के नुकसान की भरपाई क्या मुख्यमंत्री भूपेश बघेल करेंगे।

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