दूसरों के घर में रौशनी करने वाले के घर में दीया जलना भी होने लगा मुश्किल। पहले आर्टिफिशियल चाइनीज दिये ने इन कुम्हारों के व्यापार को नुकसान पहुंचाया और अब गौठान में बन रहे “दिये” ने दिया दर्द।
Nbcindia24/परंपरागत पुस्तैनी कार्य को जीवित रख बालोद जिले के कुम्हार अपने परिवार का जीवन यापन करते आ रहे। स्वयं के द्वारा निर्मित मिट्टी के दिये , मटका, कलशा सहित विभिन्न प्रकार के समाग्री को बेच उससे होने वाले आमदानी से अपने परिवार का जीविका चलाते है। वही कुम्हारों के लिए दीपावली का पर्व ही मेन सीजन होता है। कुम्हारों द्वारा निर्मित मिट्टी के दिये से दीपावली में हर घर जगमगा उठता है।

देवेंद्र कुमार डौंडी निवासी कुम्हार ने बतलाया कि बीते कुछ वर्षों से बाजारों में आए आर्टिफिशियल चाइनीज दिये और कोरोना की मार के बाद गौठानो में विभिन्न समूह द्वारा निर्माण किए जा रहे। गोबर के दीये ने कुम्हार परिवारों के रोजी-रोटी पर काफी असर डाल दिया। जिससे परिवार चलाना भी मुश्किल होने लगा है।

कचरा बाई चक्रधारी का कहना है कि हमारे द्वारा निर्मित मिट्टी के दिए को 20रुपये दर्जन में बेचते है। और गौठान में बन रहे दिए को 50 दर्जन बेच रहे। उसके बाद भी हमारे दिये ठीक से नही बिक पाते और ना ही मजदूरी निकल पाता है। हमें सबसे ज्यादा दिक्कत मिट्टी और सामानों को पकाने के लिए लकड़ी की होती है। जो हमें आसानी से नहीं मिल पाता।

डौंडी निवासी कुम्हार लक्ष्मण चक्रधारी कहते है चुनाव के समय नेता को समाज याद आता है। और बाद में समाज को भूल जाते हैं। काग्रेस सरकार को 3 साल हो गए हमे ना इलेक्ट्रिक चाक मिला और नहीं कोई सुविधा दिए। तीन-चार माह पहले माटी कला बोर्ड का गठन किया गया। लेकिन कुम्हारों अबतक कोई लाभ नहीं मिला।
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