सदियों से कुत्ते इंसान के विश्वसनीय और वफादार साथी रहे हैं और आज भी हैं ।
Nbcindia24/जगदलपुर/ राजेंद्र बाजपेयी की रिपोर्ट। बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ लड़ी जा रही जंग में जवानों के अलावा स्निफर डॉग की सजगता भी मायने रखती है । सीजर, शिवा और टोनी ने ढूंढे हैं 200 किलो से ज्यादा बारूद और बचाई है जवानों की जान ।
बस्तर की भौगोलिक स्थिति नक्सलियों की पनाहगार बन उन्हें संरक्षित करती रही । बीहड़ों में उनके खिलाफ कोई भी ऑपरेशन चलाना आसान नहीं होता है।
माओवादी सुराक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने की ताक में रहते हैं । जवानों की जरा सी चूक और नक्सली मनसूबे कामयाब । उनके नापाक तरीकों व हिंसा से बस्तर की धरती रक्तरंजित होती आई है । जगह-जगह IED के साथ ही स्पाइक होल प्लांट। ऐसे में भूमिगत मौत के सामान को अपनी कुशलता से बरामद करते हैं ये बेजुबान खोजी कुत्ते
दंतेवाड़ा पुलिस के 3 डॉग सीजर, शिवा और टोनी ने अब तक 200 किलो से ज्यादा बारूद ढूंढने में पुलिस को जहां बड़ी सफलता दिलाई है। वहीं ऑपरेशन के दौरान कई जवानों की जिंदगी भी बचाई है। 4 साल से कम उम्र के ये तीनों डॉग्स जवानों की मुहिम में उन्हें बेखौफ रहने का भरोसा बनते हैं ।
इन डॉग्स ने ज्यादातर पोटाली, नहाड़ी, ककाड़ी, बुरगम जैसे इलाकों में जहां नक्सलियों ने कदम कदम पर प्रेशर IED, कमांड IED और पाइप बम बिछा रखे हैं , को सूंघकर खोज निकालने में इन डॉग्स ने कई सफलता दिलाई है।
दंतेवाड़ा SP अभिषेक पल्लव के अनुसार, इन तीनों खोजी कुत्तों ने नक्सल मोर्चे पर बड़ी सफलताएं दिलाई हैं।
जंगलों में फोर्स जब भी ऑपरेशन पर निकलती है उनमें सबसे आगे खोजी कुत्ते रहते हैं। फिर बम निरोधक दस्ता की टीम और अंत में जवान सर्चिंग करते हुए आगे बढ़ते हैं। इन डॉग्स को IED ढूंढने की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है। फोर्स के पास ज्यादातर लैब्राडोर नस्ल के डॉग हैं। जवानों को सबसे ज्यादा खतरा पतझड़ के मौसम में होता है। क्योंकि मौसम में जंगल में माओवादी सूखे पत्तों के नीचे आसानी से बम प्लांट करते हैं। इस समय IED ढूंढने इन्हीं डॉग्स की ज्यादा मदद ली जाती है।
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