शारदीय नवरात्र आते ही बस्तर की आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी की धरा दन्तेवाड़ा में देवी के दर्शनों के लिए दर्शनार्थियों का तांता

छत्तीसगढ़: शारदीय नवरात्र आते ही बस्तर की आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी की धरा दन्तेवाड़ा में देवी के दर्शनों के लिए दर्शनार्थियों का तांता पहले ही दिन से उमड़ने लगा. है। देवी दंतेश्वरी मंदिर को पूरी तरह से सजाया गया है। दंतेश्वरी देवी की ख्याति भारत वर्ष भर में फैली हुई है। उनके दर्शनों के लिए भक्त दूर-दराज से अपनी अपनी श्रद्धा भक्ति से पहुँचते हैं.

नवरात्रि में देवी के नौ रूपो की पूजा अर्चना

प्रथम पूजा माता शैलीपुत्री की : शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूप में पहले स्वरूप में जानी जाती हैं।[1] ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा[2]। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।

माता ब्रह्मचारिणी : ब्रह्मचारिणी माँ की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। यह जानकारी भविष्य पुराण से ली गई हे।

माता चंद्रघन्टा : माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है। लोकवेद के अनुसार माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।

माता कूष्माण्डा : नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्माण्डा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मन्द, हल्की हँसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्माण्डा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।
इस देवी की आठ भुजाएँ हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्माण्ड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्माण्डा।

माता स्कंदमाता : नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।

माता कात्यानी : मां दुर्गा की छठी विभूति हैं मां कात्यायनी। शास्त्रों के मुताबिक जो भक्त दुर्गा मां की छठी विभूति कात्यायनी की आराधना करते हैं मां की कृपा उन पर सदैव बनी रहती है। शास्त्रों में माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है। षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहते हैं। छठी माता की पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है।

माता कालरात्रि : नवरात्रि का सातवां दिन माँ कालरात्रि को समर्पित है। इस दिन पूरे विधि-विधान से दुर्गा माता के सातवें स्वरूप माँ कालरात्रि की पूजा करने से सुख-समृद्धि बनी रहती है साथ ही अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी भी कहा जाता है।

माता महागौरी : महागौरी हिंदू देवी माँ महादेवी के नवदुर्गा पहलुओं में से आठवां रूप है । नवरात्रि के आठवें दिन उनकी पूजा की जाती है । माना जाता है कि महागौरी अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हैं।

माता सिद्धिदात्री :माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।

पहले दिन से ही हजारों की संख्या में पहुंचते है श्रद्धालु

मां दंतेश्वरी देवी के भक्त पहले ही दिन से हजारो की संख्या में दर्शनों के लिए पहुँचे। मन्दिर परिसर में सुबह से ही बड़ी लाइन लगी थी।नवरात्र के लिए प्रशासन ने भी जगह जगह टैंट पंडाल लगाकर रुकने ठहरने की व्यवस्था की है। साथ ही आस्था से लोगो ने अलग से भी दन्तेवाड़ा पहुँचने वाले सभी रास्तो में पदयात्रियों के लिए व्यवस्था अपने अपने स्तर से कर रहे है।नवरात्र आते ही सहस्त्र ज्योति कलश देवी की श्रीधा में जलने लगे है। नवरात्र में देवी दंतेश्वरी के भक्त भारत के कोने कोने से ज्योत कलश की स्थापना अपनी मनोकामना के लिए जलवाते है। ५२ शक्तिपीठो में दंतेश्वरी देवी की मान्यता भक्तों में है। आने वाले नौ दिनों तक दंतेश्वरी मंदिर में दर्शनों को भक्तों को संख्या दिनों दिन बढ़ते ही जाएगी।

ऑनलाइन दर्शन की मिलेगी सुविधा

इस नवरात्र में लाखों की संख्या में भक्त अपनी मनोकामना लेकर माता के दर्शन करने पहुंचेंगे. माता के दर्शन के बाद भक्तगण पर्यटन स्थलों का भी लुत्फ उठाएंगे, जिसको देखते हुए जिला प्रशासन टेंपल कमेटी की ओर से इस साल मां दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण के साथ ही जगह-जगह ऑनलाइन दर्शन, ऑनलाइन ज्योत के लिए पर्ची कटवाने की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।

क्यूआर कोड से मिलेगी जानकारी

नवरात्र में इस साल भी हर दिन सुबह शाम आरती का लाइव प्रसारण किया जाएगा. ये प्रसारण टेंपल कमेटी के ऑफिशियल यूट्यूब चैनल पर क्लिक कर भक्त माता के दर्शन कर सकते हैं. मां दंतेश्वरी मंदिर की संपूर्ण जानकारी और पर्यटक स्थलों की जानकारी इसी यूट्यूब चैनल के माध्यम से मिल पाएगी. इसके लिए भक्तगणों के लिए मंदिर प्रांगण में क्यूआर बारकोड चस्पा किया गया है. ऐसे में केवल एक क्लिक से श्रद्धालुओं को पूरी जानकारी मिलेगी.

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