संतानों की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा व्रत,हलषष्ठी देवी की हुई श्रद्धा पूर्वक पूजा

धर्मेंद्र यादव धमतरी/ जिले के हर ग्राम शहर अंचलों में संतानों की दीर्घायु के लिए हलषष्ठी (कमरछठ) के पर्व पर आस्था के साथ माताओं ने पूजा की है।वही नगरी अंचल के ग्राम सांकरा में भी हलषष्ठी (कमरछठ) के पर्व पर माताएं उपवास रहकर अपने संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना किए हैं। बता दें शाम के समय माताओं ने अपने संतानों के पीठ पर ममता की थाप मारकर आशीर्वाद दिया है।

इस पर्व पर माताएं दिन भर निर्जला उपवास रहकर शाम को पूजा-अर्चना कर व्रत तोड़ते हैं। गौरतलब है कि, हलषष्ठी का व्रत भादो महीना के कृष्ण पक्ष के षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पूजा में चना,जौ, गेहूं,मक्का, अरहर, तिंवरा,राहेर, लाई, महुआ,आदि चढा़या जाता है। हलषष्ठी पर बिना हल लगे अन्न और भैंस के दूध, दही का उपयोग किया जाता है। इस दिन महुआ का दातुन कर पलाश के पत्तल में पसहर चावल का भोजन करने की परंपरा है। इस अवसर पर महिलाएं पूजा के लिए बनाए सगरी कुंड के परिक्रमा लगाककर सामूहिक रूप से गीत भी गाते हैं। उपवास रहने वाली महिलाएं 6 प्रकार के भोग चढ़ा के 6 प्रकार के खिलौना अर्पित करते हैं। 6 प्रकार के कथा कहा जाता है। जिसे सुनकर सगरी में 6 बार पानी डाला जाता है। पुत्र के कमर पर 6 बार कपड़ें_ से पोता मार के 6 प्रकार के भाजी खाकर व्रत तोड़ा जाता है।

सगरी खोद कर माताओं ने की पूजा अर्चना

ग्राम सांकरा में माताओं ने शाम के समय तालाब नुमा गढ्ढा सगरी खोद कर उसमें पानी भर दिया जिसके बाद सगरी के पार को कांस के मंडप, कलश, बेर, कांशी के फूल,पलाश, गूलर आदि पेड़ के टहनियों से सजाकर भगवान शिव, गौरी, गणेश, कार्तिकेय, नंदी के मूर्ति बनाकर सगरी के चारों तरफ खड़े होकर पूजा अर्चना किया।चना,गेहूं,तिंवरा,राहेर,लाई के भोग लगाकर हलषष्ठी माता के पूजा कर कथा सुन सगरी में बेल पत्र, भैंस के दूध, दही, घी, कांशी के फूल, श्रृंगार का सामान, लाई, महुआ के फूल माटी से बने भगुआ में भरके अर्पित कर भगवान भोलेनाथ से संतान सुख और लंबी उम्र का वरदान मांगा है। इस दौरान माताएं साड़ी आदि सुहाग की सामग्रीयां दान कर स्थानीय पुरोहितों से हलषष्ठी माता की कहानी भी सुन कर अपने-अपने पुत्रों के पीठ पर छुई के पोता मारकर उनके सुख-समृद्धि,सुखमय जीवन और लंबी उम्र की कामना किया है।उसके बाद घर आकर माताएं पसहर चावल से बने भोजन में भैंस के दूध,दही मिलाकर ग्रहण कर व्रत को तोड़ते हैं।

संतानों को क्यों मारा जाता है छुई का पोता

इस दिन संतानों की लंबी उम्र के लिए सामूहिक रुप से सैकड़ों महिला एकत्रित होकर और विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर संतान के दीर्घायु और सुख-समृद्घि के लिए भगवान से मन्नत मांगते हैं। पूजा-अर्चना के बाद माताएं अपने बच्चों के पीठ पर सात रंग के कपड़ों के टुकड़ें से निशान लगाकर अर्थात छुई के पीला पोता मारकर लंबी उम्र का आशीर्वाद देते हैं। वहीं पूजा के रूप में नारियल, अगरबत्ती, कुमकुम, बंदन, चंदन, फलाहार के साथ लाई, चना, मूंग, गेंहू, अरहर, दोना पत्तल सहित अन्य सामग्री सगरी में चढ़ाते हैं।

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