दशहरे की अनोखी परंपरा: यहाँ दहन नहीं रावण का किया जाता है वध

जिले के इस गांव में चार दशक से भी अधिक समय से एक परंपरा चल रही है, जहां रावण दहन की बजाय वध किया जाता है.

VIJAY SAHU फरसगाव/ छत्तीसगढ़ में बस्तर के कोंडागांव में दशहरा ग्राम भुमका में अलग तरीके से मनाया जाता है. विजयदशमी या दशहरा के बारे में जब हम सोचतें. हैं तो दिमाग में सबसे पहले दहन ही आता है. पर कोंडागांव में विजयदशमी काफी अलग तरीके से मनाया जाता है. जिले के कुछ गांवों में चार दशक से भी अधिक समय से एक परंपरा चल रही है, जहां रावण दहन की बजाय वध किया जाता है और रावण की नाभि से निकले अमृत का तिलक किया जाता है. इसके पीछे ग्रामीणों की अपनी ही एक मान्यता है.

मटके से बनाया जाता था सिर
बस्तर संभाग के कोण्डागांव जिले के भुमका में चार दशक पहले से अनोखे तरीके से दशहरा मनाया जाता है. इन गांव में मिट्टी का रावण का पुतला बनाया जाता है. भुमका गांव के कलाकर मोहन सिंह कुंवर ने बताया कि वे पिछले 26 साल से रावण का पुतला बना रहे हैं. शुरुआती दौर में मटके से रावण का सिर बनाया जाता था. गांव में दशहरा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. विजय दशमी के दिन रामलीला का मंचन होता है . जिसे देखने आसपास के हजारो ग्रामीण रामलीला मैदान में पहुंचते है.

दहन नहीं वध की जाता है

गाँव के लोगो का मानना है कि रामलीला के अंत में राम रावण का वध करता है. गांव में रावन दहन नहीं किया जाता है. क्योंकि रामायण ग्रन्थ में उल्लेख है कि राम ने रावण का वध किया था उसी के अनुसार गांव में रावण दहन नहीं बल्कि उसका वध किया जाता है. रामलीला मंचन के बाद आखिरी में राम रावण का वध करते है. राम का तीर रावण को लगते ही राम की सेना रावण की मूर्ति पर हमला कर उस पर प्रहार करती है. वहीं राम के तीर लगाने से रावण की नाभि से अमृत के रूप में लाल गुलाल का घोल बहने लगता है, जिसका टिका लगाने के लिए ग्रामीणों के बीच होड़ मची रहती है. आयोजक समिति रामभरोस कुंवर, बिरेंद्र चनाप, बैजनाथ तिवारी, रूपसिंह निषाद, मिलन चनाप, मोहन सिंह कुंवर, लोकनाथ निषाद, सतीश कुवर, चंदूलाल कातिया, सोनसिह निषाद, नारायण कुवर, विनोद कुवर , खिलेद्र , विनोद, सभी कलाकार, एव समस्त ग्रामवासी सहित बडी संख्या में दर्शक मौजुद रहे

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