गौरी गौरा पूजा का 55 वां वर्ष राम नगर चौक पन्डरदल्ली दल्ली राजहरा में
Nbcindia24/ वीरेंद्र भारद्वाज/ दल्ली राजहरा । छत्तीसगढ़ परंपरा के अनुसार आज से 55 वर्ष पहले जब दल्ली राजहरा के रामनगर चौक में गौरी गौरा उत्सव का शुरुआत यहां के स्वर्गीय उजियार बैगा और स्वर्गीय गणेश राम निर्मलकर ने किया था।
उस समय आज की तरह विद्युत व्यवस्था नहीं होता था मिट्टीतेल के ग्यास से रोशनी किया जाता था तथा मिट्टी का गौरा चौरा का निर्माण हर साल होता था। क्योंकि बारिश में गौरा चौरा पूरी तरह बह जाता था । आज भी उस परंपरा को रामनगर चौकी के युवा पीढ़ी जारी रखे हुए हैं । उसी परंपरा उसी अंदाज में गौरी गौरा उत्सव मनाया जाता है।
दीपावली के 5 दिन का त्यौहार में द्वादशी के दिन गौरी गौरा उत्सव का शुरुआत छोटे-छोटे बच्चों के द्वारा मुसर से अंडे फोड़ने के परंपरा से चालू होता है। उसके बाद मोहल्ले के माताओं के द्वारा गौरी गौरा का श्रृंगार गीत जिसे छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुसार गौरी गौरा जगाना कहते हैं गाया जाता है। द्वादशी त्रयोदशी चतुर्दशी को यह परंपरा लगातार चलते जाता है। महालक्ष्मी पूजा के दिन रात्रि में युवाओं के द्वारा मिट्टी से भगवान शिव एवं माता पार्वती जिसे हम गौरी गौरा कहते हैं का निर्माण करते हैं। माय कलश एवं वाद्य यंत्र डफला टासक ढोल गुदुम झुनझुना के साथ रात्रि 3:00 से 4:00 मोहल्ले में घूम कर कलश इकट्ठा किया जाता है ।जो गौरी गौरा निर्माण स्थल पर जाकर समाप्त होता है ।बैगा के द्वारा गौरी गौरा पूजा किया जाता है फिर सोहर गीत के साथ गौरी गौरा को गौरा चावरा पर स- सम्मान लाया जाता है । गौरी गौरा को कुंवारे लड़कों के द्वारा अपने सिर पर धारण किया जाता है। आगे-आगे गौरा पीछे गौरी उसके पीछे माई करसा अन्य कलर्स क्रमबद्ध चलते हैं। माताओं के द्वारा सोहर गीत वाद्य यंत्रों के साथ बजते हुए गौरा चावरा तक आते हैं । माहौल ऐसा रहता है कि कई पुरुष ,महिलाएं के ऊपर देव सवार हो जाता है। 2 घंटे विश्राम के बाद फिर सभी लोग गौरा चावरा के पास इकट्ठा होकर गौरी गौरा का परिवार सहित पूजा करते हैं। भगवान गौरा अर्थात शंकर भगवान को नारियल फूल अगरबत्ती दिया अनुसार पैसा समर्पण करते हैं । उसके बाद विसर्जन के लिए इसी क्रम से पुन: मोहल्ला भ्रमण करते हुए निकलते हैं। जो श्रद्धालु गौरी गौरा का पूजा करना चाहते हैं वह अपने घर के पास पाटा लगाकर उसे श्रद्धा से पूजा अर्चना करते हैं तलाब में गौरी गौरा विसर्जन के साथ यह कार्यक्रम समाप्त होता है। 5 दिनों का यह त्यौहार छत्तीसगढ़ी संस्कृति का ज्ञान कराता है वार्ड नंबर दो के महिलाएं युवाओं तथा वरिष्ठ नागरिकों के द्वारा यह परंपरा आज भी जीवित है। लोग आपसी नाराजगी भूलकर इसे अपना स्वयं का त्यौहार माना कर एक दूसरे का सहयोग कर सद्भावना के साथ मनाते हैं।
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