स्वतन्त्रा दिवस विशेष:- अंग्रेजों के अमीन पटवारी से स्वतन्त्रा संग्राम सेनानी बने वली मोहम्मद और गोरकापार से गांधी गोरकापार गांव की कहानी।

Nbcindia24/छत्तीसगढ़/ बालोद/आज पूरा देश आजादी के 75 वां वर्ष गांठ मनाया जा रहा। पर देश को आजाद कराने हमारे जिले के भी कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी सहभागिता दी है। भले ही जिले के स्वतंत्रा संग्राम सेनानी आज हमारे बीच नही है। लेकिन बालोद जिला मुख्यालय सहित ग्राम निपानी, भरदा, गोडरी,रनचीरई, भरदा, नारागांव सहित अन्य गांवों के स्वतंत्रा संग्राम सेनानियों की याद आज भी ताजा है। हालांकि जिले में कितने स्वतन्त्रा संग्राम सेनानी है इसकी पूरी तरह से सही जानकारी नही है। लेकिन 44 सेनानियों की पुष्टि की गई है।

पर इस स्वतन्त्रा दिवस हम जिले के गुंडरदेही ब्लाक के ग्राम डौंडीलोहारा के एक ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की कहानी बताने जा रहे है। जिन्होंने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के अमीन पटवारी की नोकरी छोड़ी और आजादी की लड़ाई लड़ी। जेल भी गए जब उनकी रिहाई हुई तो गोरकापार गांव को ग्रामीणो ने गांधी गोरकापार के नाम लिखा गया। जो आज भी उसी नाम से जाने जाते है।

बालोद. हमारे देश के स्वतंत्रता आंदोलन में एक सिपाही ऐसे भी हुए हैं,जिनकी रिहाई की वजह ‘बापू का सपना’ बना। जब बापू का यह सपना सच हो गया तो गांव वालों ने खुद ही नाम के आगे गांधी जोड़ लिया। इस मामंले को एक दशक बीत गए है।
यह रोचक कहानी बालोद जिले के गुंडरदेही विकासखण्ड के गांधी ग्राम गोरकापार की है। जहां
डौंडीलोहारा निवासी अमीन पटवारी स्व.वली मुहम्मद जो गोरकापार में पटवारी में पदस्थ थे उन्होंने अंग्रेजों की नौकरी छोड़ स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। उन्होंने अंग्रेजों के द्वारा दिये गए प्रताड़ना भी सहा जेल भी गए। लेकिन अंग्रेजों की जेल में ‘बापू का सपना’ उनकी रिहाई की वजह बना। इस घटना का असर यह हुआ कि ग्रामीणों ने अपने गांव का नाम ही गांधी गोरकापार कर दिया, जो आज भी उसी नाम से जानते है।

गोरकापार में ही थे अंग्रेजों के पटवारी, महात्मा गांधी को मानते थे संत उनके जीवनी से प्रभावित होकर कूद पड़े स्वतन्त्रा के आंदोलन में

 

 

इतिहास के जनकार अरमान अश्क ने बताया कि
स्वतन्त्रा संग्राम सेनानी वली मुहम्मद साल 1920 अमीन पटवारी थे। उस समय देश अंग्रेजों के गुलाम थे। अंग्रेज जैसे कहते थे वैसा करना पड़ता था।
एक दस्तावेज के मुताबिक वली मुहम्मद पटवारी के तौर पर गुंडरदेही के गोरकापार में पदस्थ थे।
तब एक आदिवासी को उसकी गुम भैंस का पता खुले बदन में सिर्फ धोती पहनेे हुए बूढ़े ने बताया था। जब आदिवासी उस बूढ़े को धन्यवाद देने खोजने लगा, तब अमीन पटवारी वली मुहम्मद वहां उसे मिल गए। संयोग से वली मुहम्मद की जेब में महात्मा गांधी की एक तस्वीर थी और अचानक आदिवासी की नजर इस तस्वीर पड़ी तो उसने उस बूढ़े के तौर पर महात्मा गांधी की इसी फोटो की शिनाख्त कर दी । इस घटना से वली मुहम्मद इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने महात्मा गांधी को एक संत महात्मा मानते हुए अंग्रेजों की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।

प्रदेश के साहित्यकारों के किताबो में स्वतंत्रता संग्रामवसेनामी मुहम्मद की जीवनी

प्रदेश के साहित्यकार जगदीश देशमुख, के द्वारा लिखे गए छत्तीसगढ़ के भूले बिसरे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नामक किताब में भी इसका जिक्र किया गया है।
यही नही उनसे जुड़ी घटनाओं का जिक्र जिला कांग्रेस कमेटी दुर्ग के तत्कालीन महामंत्री बदरुद्दीन कुरैशी के संपादन में 1995 में निकाली गई किताब ‘आजादी के दीवाने’ में भी है।

बालोद के स्वतन्त्रा संग्राम सेनानी स्व. सरयू प्रसाद अग्रवाल भी थे उनके सहयोगी, साथ गए जेल

जानकारी के मुताबिक स्वतंत्रता सेनानी वली मुहम्मद के साथ बालोद के स्वतन्त्रा संग्राम सेनानी स्व. सरयू प्रसाद अग्रवाल वकील रहे।
साथ ही उनके साथ 100 से अधिक लोगों ने देश के आजादी के लिए जेल की हवा भी खाई।
स्व. वैली मुहम्मद ने देश की आजादी के लिए डौंडीलोहारा को अपना योजनास्थल चुना।
वहीं कुटेरा के स्व. कृष्णाराम ठाकुर और भेड़ी गांव के रामदयाल ने उनसे प्रेरणा लेकर जंगल सत्याग्रह में भाग लिया था। 24 जुलाई 1957 को स्वतंत्रता सेनानी वली मुहम्मद का निधन डौंडी लोहारा में हुआ।
वली मुहम्मद के बारे में ये भी जानना जरूरी

अंग्रेजी राज के विरोध के चलते 7 मार्च 1923 को उन्हें गिरफ्तार कर नागपुर जेल भेज दिया गया। फिर वहां से उन्हें 23 जुलाई 1923 को अकोला नागपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। इसी तरह 23 अक्टूबर 1939 से 24 नवंबर 1939 तक उन्हें रायपुर की केन्द्रीय जेल में रखा गया। अंतिम बार सन 1943 से 1945 तक पूरे दो साल तक उन्हें नागपुर जेल में कैद कर रखा गया। देश आजाद होने पर स्वतंत्रता आंदोलन में उनके इस विशिष्ट योगदान के लिए महाकौशल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी जबलपुर के सभापति सेठ गोविंददास के हस्ताक्षर युक्त एक ताम्रपत्र 15 अगस्त 1947 को प्रदान किया गया। जो आज भी वली मुहम्मद के वंशजों के पास एक धरोहर के तौर पर रखा है।

देखा महात्मा गांधी का सपना, सच हुआ जेल से रिहाई के हुआ सपना

उनके जीवनी पर लिखे किताबो व इतिहास के जानकार अरमान अश्क के मुताबिक स्वतंत्रता सेनानी वली मुहम्मद की पहली जेलयात्रा
असहयोग आंदोलन के दौर में उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था। यहां से उन्हें गोंदिया जेल भेज दिया गया था।
इस दौरान उन्हें जेल में आभास हुआ कि उनके ग्राम गोरकापार की संत प्रवृत्ति की महिला महात्मा दाई उन्हें बड़ा व सोंहारी देते हुए कह रही है कि जन्माष्टमी पर तुम्हारी रिहाई हो जाएगी। और उनका सपना भी सच साबित हुआ। अंग्रेजों के जेल से रिहाई के बाद जव वह गोरकापार पहुचे तो उनका भव्य स्वागत हुआ। और गांव के महात्मा दाई से मिलकर जेल में जो सपने देखे थे उसके बारे में बताया। फिर बताया की सपने में महात्मा गांधी ने इस बात को बताया। और आजादी व रिहाई के इस सपने को सच होने के कारण गोरकापार गांव को गांधी गोरकापार पार रखा गया जो आज भी कायम है।

शासकीय भवन, योजना अथवा नगर का नामकरण हो वली मुहम्मद के नाम पर

स्वतंत्रता सेनानी वली मुहम्मद की मौत हुए लगभग 60 साल हो गए है। पर उनको जो सम्मान मिलना चाहिए वह नही मिल पाया है। और उनकी स्मृति को शेजमे भी कोई प्रयास नही हुआ। वर्ष 1997 में जब देश में स्वतंत्रता की 50 वीं वर्षगांठ मनाई गई तो उनका नाम अंकित शिलालेख डौंडी लोहारा में लगाया गया। उनके वंशजों में पौत्र और शिक्षा विभाग से रिटायर सहायक संचालक मुहम्मद अब्दुल रशीद खान बताते हैं कि डौंडी लोहारा में एक मुहल्ले का नाम वली मुहम्मद नगर रखने की पहल की गई थी लेकिन इस पर अब तक सरकारी मुहर नहीं लग पाई है। वहीं लोहारा के स्कूल का भी नामकरण वली मुहम्मद के नाम पर करने की मांग लंबे समय से रही है।

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