67 दिन निगरानी के बाद अंडे से बाहर निकले 11 अजगर के बच्चें सहित मादा को छोड़ा गया जंगल।

67 दिन के बाद अंडो से निकले अजगर के बच्चों के साथ मां को सुरक्षित छोड़ा गया जंगल ,वन मण्डल कोरबा को मिली बड़ी सफलता।

Nbcindia24/ छत्तीसगढ़ राज्य में कोरबा जिला सांपो को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहा हैं, कोरबा जिले में जिस तरह अनेक दुर्लभ प्रजातिया मिल रहें इस बात को दर्शाता हैं की कोरबा का जंगल सांपो के लिए बहुत अनुकूल हैं साथ ही जैव विविधता से भरा पड़ा है, सांपो के साथ अन्य जीव भी लागातार कोरबा जिले में मिलते आए हैं, जिले में जिस तरफ दुर्लभ किंग कोबरा का पाया गया हैं वह अपने आप में बहुत बड़ी बात हैं जिसके संरक्षण के लिए कोरबा वन मण्डल लगातार अपने कार्य योजना बना कर कार्य कर रहा हैं, फिर एक बार कोरबा वन मण्डल को एक बड़ी कामयाबी मिली है

कुछ माह पहले 27 मई को कोरबा मुख्यालय से 35 किलोमिटर दूर सोहगपुर गांव पंचपेड़ी से ग्रामीणों द्वारा सूचना दी गई की अजगर और उसके अंडो को लोगों से खतरा है साथ ही इन्सानों को भी उस अजगर से खतरा है। जिसकी सूचना के बाद 15 अंडो के साथ मादा अजगर को सुरक्षित रेस्क्यू कर कोरबा वन मण्डल लाया गया था, जिसको बड़े अधिकारों से बात कर वन मण्डल कोरबा में ही रखने का निर्णय लिया गया जिसकी देख रेख के लिए स्नेक रेस्क्यू टीम प्रमुख वन विभाग सदस्य जितेंद्र सारथी को सौंपा गया, यह कोरबा जिला का पहला मामला हैं जहां एक अजगर को रख कर देख भाल करना था।

कोरबा डीएफओ श्रीमति प्रियांका पाण्डेय की निर्देश मिलने पर अजगर के लिए एक घर बनाया गया, एक कमरे को प्राकृतिक रूप देने के लिए कमरे में मिटटी रखा गया, जिसके ऊपर पैरा बिछाया गया, साथ ही अजगर के लिए एक बड़े से घड़े में पानी रखा गया ताकि प्यास लगने पर अपनी प्यास बुझा सके, हाला की अजगर अपने अंडो से बच्चे निकलते तक कुछ खाते पीते नहीं हैं पर इस विषय पर भी पुरा ध्यान दिया गया, कमरे का तापमान अंडो के लिए सही रहें इसके लिए 100 वाल्ट का बल्फ लगाया गया, फिर उस अंडो को रख दिया गया और अजगर को वही छोड़ा गया पुनः मादा अजगर ने अपनें अंडो को सुरक्षा घेरे में लेकर बैठ गई, और सेने लगी, उसको इस तरफ का वातावरण दिया गया मानो वो एक जंगल में हो जिसके बाद कमरे को बंद कर दिया गया, इस तरह हर सुबह शाम दरवाज़ा खोल कर देखा जाता था की वो और उसके अंडे सुरक्षित है की नहीं।

जितेंद्र सारथी के ऊपर बहुत बड़ी ज़िम्मेदार थी, जिसका उन्होंने पूरी तरह खयाल रखा, अंडो के रखें 1 दिन हो चुके थे अजगर भूखी होगी ये सोच कर उसको पहले 4 अंडे दिए गए पर उसने नहीं खाए, मानो वो भूखी नहीं है फिर इसी तरह सुबह शाम जितेंद्र सारथी और उनकी टीम लागातार देख रेख में लगे रहें, साथ ही कोरबा डीएफओ श्रीमति प्रियांका पाण्डेय भी खुद आकार अजगर और उसके अंडो का ज्याजा लेती रहीं, फिर 4 दिन बाद उसको मुर्गी चूजा दिया गया जिसको उसने खा लिया, दूसरे दिन देखने पर पाया गया वह चूज़ा नहीं हैं, इसकी जानकारी डीएफओ को देने पर उन्हें बीच बीच में अजगर को खिलाते रहने की बात हैं, ऐसे ही सुबह शाम लागातार 67 दिन उस अजगर की देख भाल किया गया, इस दरबियान अजगर को 11 मुर्गियां दिया गया, जिसको अपना शिकर बना खा लिया इस 67 दिन के अन्तराल में मादा अजगर ने अपनी केचुली भी छोड़ा और पानी से भरे बर्तन में आराम भी किया, उसकी सुरक्षा में कोई कमी न हो उसके लिए वन मण्डल कोरबा के एसडीओ श्री आशीष खेलवार,कोरबा रेंजर श्री सियाराम कर्माकर की बड़ी भूमिका रहीं, यह प्रोजेक्ट अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती थी जिसे पूरी सावधानी और समझदारी से पुरा किया गया।

स्नेक रेस्क्यू टीम के प्रमुख जितेंद्र सारथी ने इस पूरे 67 दिन अपने टीम के सदस्यो राजू बर्मन, कुलदीप राठौर, सुनील निर्मलकर, मोंटू, शाहिद, राकेश, अनुज, पवन , अरुण और सौरव के साथ मिलकर अपनी जिम्मेदारी निभाई, फिर वो दिन आ ही गया जिसका लम्बे समय से कोरबा डीएफओ श्रीमति प्रियांका को इंतजार था, सभी अंडे से अजगर के बच्चे बाहर निकल आए देख जितेंद्र सारथी खुशी से गद गद हो गए, तत्काल इसकी जानकारी डीएफओ को दिया गया, कुछ देर बाद खुद वहा पहुंची और अंडो से मुंह बाहर निकाले बच्चों को देख खुशी जाहिर किया, जब तक पूरे बच्चे बाहर न आ जाएं तब तक ऐसे ही रहने देने की बात कहीं, फिर सुबह तक 15 अंडो से 11 बच्चे बाहर आ चूके थे,4 अंडे विकसित नहीं हुए थे, अब जल्द से जल्द मादा अजगर के साथ बच्चों को सुरक्षित जंगल में छोड़ने की योजना बनाई गईं, फिर बड़ी सावधानी से मादा अजगर को काबू में करते हुए सभी 11 बच्चों को एक कार्टून में रखा गया, और दूर जंगल जहा आस पास नाला या नदी में छोड़ने का निर्णय लिया गया, कोरबा डीएफओ श्रीमति प्रियांका पाण्डेय के आदेश पर ऐसे जगह का चयन किया गया, फिर उसको छोड़ने के लिए एसडीओ श्री आशीष खेलवार , श्री सियाराम कर्माकर के साथ रेस्क्यू टीम के प्रमुख जितेंद्र सारथी रवाना हुए, शहर से दूर फिर जंगल में पानी के समीप मादा अजगर के साथ बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़ा गया ताकि उसको छोटे मेढ़क, मछली मिल सके, इस तरह 67 दिन की मेहनत और तपस्या ने कई नई ज़िंदगी दी जो अपने आप में बहुत बड़ी बात हैं, कोरबा जिले में यह पहला ऐसा मामला रहा जहा मादा अजगर को रख कर बच्चों के साथ जंगल में छोड़ा गया।

डीएफओ श्रीमति प्रियांका पाण्डेय ने कहा यह पुरा प्रोजेक्ट बहुत बड़ा चैलेंज था हमारे लिए जो की सफल रहा, इसमें कोरबा के सर्प मित्र दल जितेंद्र सारथी और उनकी टीम की बहुत बड़ी भूमिका रहीं, साथ ही अमला कोरबा वन मण्डल की भी बहुत बड़ी भूमिका रहीं, हर एक व्यक्ति ने अपनी 100 प्रतिशत जिम्मेदारी निभाई।

सर्प मित्र के प्रमुख जितेंद्र सारथी ने कहा यह मेरे जीवन का पहला मामला हमारी टीम ने रात दिन उस मादा अजगर और अंडो देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ा, रात दिन उसके देख रेख और भोजन कराने में लगे रहें, और आखिरकार हमारे मेहनत रंग लाया और अंडों से अजगर के बच्चे बाहर निकालने के बाद उन्हें सुरक्षित स्थान पर छोड़ा गया।

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