दंतेवाड़ा ज़िले के एक मात्र हल्बा गढ़ बारसूर में माई दंतेश्वरी जी और परलकोट विद्रोह के जननायक शहीद गैद सिंह की प्रतिमा में दीप प्रज्ज्वलित कर मनाया गया शक्ति दिवस समारोह

दंतेवाड़ा ज़िले के एक मात्र हल्बा गढ़ बारसूर में माई दंतेश्वरी जी और परलकोट विद्रोह के जननायक शहीद गैद सिंह की प्रतिमा में दीप प्रज्ज्वलित कर मनाया गया शक्ति दिवस समारोह

 

दंतेवाड़ा / बारसूर / ज़िले के एक मात्र हल्बा गढ़ बारसूर में अखिल भारतीय हल्बा – हल्बी आदिवासी समाज के द्वारा 26 दिसम्बर को शक्ति दिवस समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें पाली ग्राम एरपुंड , कौशलनार , गीदम के हल्बा समाज के सगाजन शामिल हुए। शक्ति दिवस समारोह के अवसर पर समारोह स्थल से दंतेश्वरी मावली माता मंदिर तक कलश यात्रा निकालकर गांव के मावली माता के प्रागंण में दीप प्रज्ज्वलित किया गया।

 

सभा भवन में बस्तर और हल्बा जनजाति की आराध्य देवी माई दंतेश्वरी और परलकोट विद्रोह के जननायक शहीद गैद सिंह की प्रतिमा में दीप प्रज्ज्वलित के साथ ध्वजा रोहण कर विभिन्न संस्कृति रंगा रंग कार्यक्रमों , वॉलीबाल , कबड्डी , दौड़ कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। साथ ही बारसूर गड़ अध्यक्ष रामनाथ पुजारी और गड़ सचिव हरीराम प्रधान के द्वारा विशेषकर फर्जी जाति प्रमाण – पत्र को रोकने को लेकर युवा वर्ग को जागरूक होने और हल्बा जनजाति की संस्कृति , रीति रिवाजों ,परम्पराओं को बचाये रखने पर विशेष जोर दिया गया।

 

 

 26 दिसम्बर शक्ति दिवस का इतिहास –

 

आपको बता दे की छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग में निवासरत करने वाले आदिवासी जनजातियों में प्रमुख जनजाति हल्बा जाति के द्वारा प्रति वर्ष 26 दिसम्बर को अपने शौर्य बलिदान के सम्मान के रूप में शक्ति दिवस समारोह का आयोजन किया जाता है 

सर्व प्रथम शक्ति दिवस का आयोजन बड़े डोंगर में आदिवासी आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी बड़ेडोंगर के क्षत्र छाया में में दिनांक 26 दिसम्बर सन् 1998 दिन शनिवार के मध्य रात्रि को प्रारम्भ हुआ जिसका विषय पांचों महासभा का एकीकरण होना था।

शक्ति दिवस हल्बा समुदाय के द्वारा हल्बा विद्रोह की स्मृति एवं पांचों हल्बा महासभाओं की एकीकरण के स्मृति में मनाया जाने वाला हल्बा समुदाय की ऐतिहासिक व विशेष महत्वपूर्ण दिन है जिसका हल्बा जनजाति के लोग उत्साह पूर्वक 26 दिसम्बर को शक्ति दिवस के रूप में मनाते हैं ।

 *हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजाति है।* 

 

● 2011 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य में इनकी कुल जनसंख्या 375182 है।

 

● हलबा जनजाति राज्य में मुख्यतः बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर, कांकेर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, बालोद, धमतरी तथा राजनांदगांव जिले में निवासरत हैं।

 

 

● हलबा जनजाति के घर सामान्यता लकड़ी एवं मिट्टी से निर्मित होते हैं जिनके ऊपर खपरैल लगी होती है।

 

● हलबा जनजाति की महिलाएं अपने हाथ पैरों पर देवार महिलाओं से गोदना गुदवाती हैं जिसमें विभिन्न प्रकार की आकृतियां होती है।

 

● हलबा जनजाति की महिलाएं साड़ी ब्लाउज पहनती हैं एवं पुरुष धोती, पटका, बंडी, सलुका पहनते हैं।

 

● इनका मुख्य भोजन कोदो, कुटकी, बांसी, उड़द, मूंग, अरहर मौसमी सब्जी, चटनी आदि है। हल्बा जनजाति के लोग मांसाहार भी करते हैं।

 

 

● हलबा जनजाति की आर्थिक अवस्था मुख्यतः कृषि एवं जंगल उपज पर निर्भर है, कृषि कार्य में निपुण होने के कारण इस जनजाति की आर्थिक स्थिति अन्य जनजातियों से अच्छी है।

 

● धान को मुसल से बाहना में कूटकर हलबा जनजाति के लोग चिवड़ा भी बनाते हैं।

 

● हल्बा जनजाति की बोली हल्बी है, बस्तर संभाग के लगभग सभी जनजातियाँ हलबी में संवाद करते हैं।

 

● साक्षरता के मामले में हलबा जनजाति अन्य जनजातियों की अपेक्षा अधिक साक्षर है। 2011 के जनगणना के अनुसार हलबा जनजाति की साक्षरता 72.6% है।

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