Nbcindia24/chhattisgarh। अन्न दान का महापर्व “”छेरछेरा”” धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है।छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है। इस दौरान लोग घर-घर जाकर लोगों से अन्न का दान माँगते हैं। वही इस पर्व में गाँव के युवक-यवती घरों घर जा डंडा नृत्य करते हैं।
लोक परंपरा के अनुसार पौष महीने की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष छेरछेरा का त्योहार मनाया जाता है।इस दिन सुबह से ही बच्चे, युवक व युवतियाँ हाथ में टोकरी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा माँगते हैं।वहीं युवकों की टोलियाँ डंडा नृत्य कर घर-घर पहुँचती हैं।धान मिंसाई हो जाने के चलते गाँव में घर-घर धान का भंडार होता है,जिसके चलते लोग छेर छेरा माँगने वालों को दान करते हैं।
इन्हें हर घर से धान, चावल व नकद राशि मिलती है।इस त्योहार के दस दिन पहले ही डंडा नृत्य करने वाले लोग आसपास के गाँवों में नृत्य करने जाते हैं। वहाँ उन्हें बड़ी मात्रा में धान व नगद रुपए मिल जाते हैं।इस त्योहार के दिन कामकाज पूरी तरह बंद रहता है।इस दिन लोग प्रायः गाँव छोड़कर बाहर नहीं जाते। आज इलाके में द्वार-द्वार पर ‘छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा’ की गूँज सुनाई दे रही है।पौष पूर्णिमा के अवसर पर मनाए जाने वाले इस पर्व के लिए लोगों में काफी उत्साह है।गौरतलब है कि इस पर्व में अन्न दान की परंपरा का निर्वहन किया जाता है
गौरतलब है कि यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है। उत्सवधर्मिता से जुड़ा छत्तीसगढ़ का मानस लोकपर्व के माध्यम से सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए आदिकाल से संकल्पित रहा है।
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